Friday, 14 November 2014
Monday, 28 July 2014
प्राक्-कल्पना - पूर्व कल्पना या उपकल्पना
Hypothesis
प्राक्-कल्पना - पूर्व कल्पना या उपकल्पना
भौगोलिक शोध, अनुसन्धान या अध्ययन के क्षेत्र में प्राक्-कल्पना, पूर्व कल्पना या उपकल्पना का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसका निर्माण और प्रयोग वैज्ञानिक अध्ययन पद्धति का एक महत्वपूर्ण चरण होता है।
प्राक्-कल्पना अंग्रेजी के शब्द ‘हाइपोथिसिस’ का हिंदी अनुवाद है। यह शब्द ग्रीक भाषा के शब्दों से बना है, जिसका अर्थ होता है विचार या सिद्धांत का पूर्व कथन।
प्राक्-कल्पना में भी प्राक् का अर्थ पूर्व और कल्पना का अर्थ विचार ही होता है; यानि पूर्व का विचार या सिद्धांत होता है। सरल शब्दों में प्राक्-कल्पना का अर्थ होता है ; एक ऐसा विचार या सिद्धांत जिसे शोधकर्ता अध्ययन के लक्ष्य के रूप में रखता है, उसकी जांच करता है और प्रमाणित करता है।
प्राक्-कल्पना को विभिन्न विद्वानो ने अपने-अपने दृष्टिकोण से परिभाषित किया है।
कुछ विद्वानो का मानना है कि प्राक्-कल्पना विचार या सिद्धांत का सामान्यीकरण होता है । यह एक सामयिक अथवा अस्थायी निष्कर्ष है, जिसकी सत्यता की परीक्षा की जाती है। मान के अनुसार प्राक्-कल्पना एक अस्थायी अनुमान है।
कुछ विद्वानो का मानना है कि प्राक्-कल्पना विचार या सिद्धांत का सामान्यीकरण होता है । यह एक सामयिक अथवा अस्थायी निष्कर्ष है, जिसकी सत्यता की परीक्षा की जाती है। मान के अनुसार प्राक्-कल्पना एक अस्थायी अनुमान है।
बोगार्डस के अनुसार प्राक्-कल्पना परीक्षण के लिए प्रस्तुत की गयी प्रस्तावना है। प्राक्-कल्पना का निर्माण शोध या अनुसन्धान का
आधार होता है। प्राक्-कल्पना को सामान्यतः सिद्धांत का लोक सामान्यीकरण माना जाता है, जिसकी परीक्षा शोध के दौरान की जाती है। आरंभिक स्तर पर प्राक्-कल्पना कोई भी अनुमान, कल्पनात्मक विचार, सहज ज्ञान या और कुछ हो सकता है, जो कि अध्ययन क्रिया, अनुसन्धान या शोध का आधार बन जाए।
बैली के अनुसार प्राक्-कल्पना एक ऐसी प्रस्तावना है जिसे परीक्षण के लिए रखा जाता है।
प्राक्-कल्पना के अभाव में अध्ययन के विषय की दिशा और उसका क्षेत्र अनिश्चित रहता है, जिसके कारण शोधकर्ता दिशाहीन हो जाता है। इसलिए शोधकर्ता के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपनी कल्पना, अनुभव या किसी अन्य श्रोतों के आधार पर एक तर्क वाक्य का निर्माण करे, जिसका शोध के दौरान परिक्षण किया जाता है।
डोब्रिनर के मुताबिक प्राक्-कल्पनाएं ऐसे अनुमान है जो यह बताता हैं कि विभिन्न तत्व किस प्रकार अन्तःसंबंधित हैं।
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प्राक्-कल्पना
पूर्वानुमान पर आधारित कथन, विचार या सिद्धांत होता है । यह प्रारंभिक जानकारी के आधार पर किया गया पूर्वानुमान है, जिसके आधार पर संभावित शोध को एक निश्चित दिशा प्रदान किया जाता है।
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सामान्यतः प्राक्-कल्पना एक प्रकार का सर्वोत्तम अनुमान होता है जो कुछ शर्ते रखता है जिनके परिक्षण की आवश्यकता होती है।
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वैज्ञानिकों ने प्राक्-कल्पना को अस्थायी सिद्धांत बताया है। यह वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित शोध, अनुसन्धान या अध्ययन का पहला चरण है। शोध में एक अच्छी प्राक्-कल्पना का निर्माण शोध के आधे कार्य का पूरा हो जाना माना जाता है।
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वैज्ञानिक आधारों पर प्राक्-कल्पनाओं को दो से अधिक चरों के मध्य संबंध का अनुमानित विवरण कहा जाता है। एक प्राक्-कल्पना दो या दो से अधिक चरों के बीच होने वाले संबंध का, अनुभाव के आधार पर, परीक्षा करने योग्य कथन है।
परिकल्पना सिद्धांत और शोध के बीच की एक आवश्यक कड़ी
है जो अतिरिक्त ज्ञान की खोज में सहायक होता है।
प्राक्-कल्पनाओं की विशेषताएं ;
स्पष्टता - परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट होनी चाहिए
उसकी भाषा और अर्थ स्पष्ट और निश्चित होनी चाहिए। अवधारणाओं के दृष्टिकोण से किसी भी स्तर पर अस्पष्टता वैज्ञानिक सिद्धांत के प्रतिकूल होती है।
अनुभव सिद्धता - अध्ययन में प्राक्-कल्पना ऐसी होनी चाहिए जिसके तथ्यों की जांच की जा सके। परिकल्पना में अनुभवसिद्ध
प्रमाणिकता का होना आवश्यक है। प्राक्-कल्पना ऐसे तथ्यों, कारकों एवं चरों से संबंधित होना चाहिए जो समाज या अध्ययन क्षेत्र में जाकर एकत्रित किए जा सकें साथ ही उनकी विश्वसनीयता की जांच भी की जा सके।
परिकल्पना किसी आदर्श को प्रस्तुत करने वाली न हो
बल्कि उसके द्वारा किसी विचार अथवा अवधारणा की सत्यता की परीक्षा की जा सके। प्राक्-कल्पना अगर आर्दशों को स्पष्ट करने वाली नही होती है तो उसकी सत्यता की परीक्षा आसानी से की जा सकती है।
विशिष्टता- सामान्य प्राक्-कल्पनाओं द्वारा सही और सटीक निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं होता, इसलिए प्राक्-कल्पनाओं को विशिष्ट और उपयोगी होना चाहिए। प्राक्-कल्पना अध्ययन विषय के किसी विशेष पहलु से जुड़ी होनी चाहिए। प्राक्-कल्पना को अध्ययन विषय के विशिष्ट और निश्चित पक्ष से संबंधित होना चाहिए।
प्रयोगसिद्ध होना- परिकल्पना प्रयोगसिद्ध या अनुभवसिद्ध होती है
परिकल्पना अध्ययन विषय के किसी विशेष पक्ष से सम्बंधित होता है
उपलब्ध प्रविधियों से संबंद्ध- प्राक्-कल्पना एक प्रस्तावना होती है, जो तथ्यों के परस्पर कारण और प्रभाव के संबंध को बताती है और वैज्ञानिक प्रविधियों द्वारा जिनकी जांच की जाती है। प्राक्-कल्पना का निर्माण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए कि उसकी सत्यता की जांच उपलब्ध प्रविधियों के द्वारा की जा सके।
सिद्धांतों से संबंधित होना- भौगोलिक विषयों से संबंधित प्राक्-कल्पनाओं को पूर्व स्थापित सिद्धांतों से संबंधित होना चाहिए। पूर्व स्थापित सिद्धांतों
के सन्दर्भ में बनायीं गयी परिकल्पना अधिक क्रमबद्ध होती है।
सरलता- किसी भी प्राक्-कल्पना या प्राकल्पना में सरलता बनाए रखने के लिए सीमित कारणों का अध्ययन करना चाहिए। अनावश्यक रूप से अधिक कारकों को शोध में शामिल नहीं करना चाहिए। पीवी यंग के अनुसार सरलता एक तेज धार वाला यंत्र है जो व्यर्थ की प्राक्-कल्पना और विवेचना को काट सकता है।
प्राक्-कल्पना की विशेषताएं;
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प्राक्-कल्पना किसी विषय के संबंध में अस्थायी हल देने का साधन होता है।
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प्राक्-कल्पना उपलब्ध पद्धतियों और साधनों से संबंधित होता है।
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प्राक्-कल्पना में अतिशोयक्तिपूर्ण भाषा का उपयोग नहीं किया जाता है।
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प्राक्-कल्पना में प्रयोगसिद्धता का गुण होता है।
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प्राक्-कल्पना व्यावहारिक और यर्थाथ पर आधारित होता है।
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प्राक्-कल्पना पूर्व में निर्मित सिद्धातों पर खरा होता है।
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प्राक्-कल्पना समस्या से सीधे संबंधित होता है।
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प्राक्-कल्पना शोध, अनुसन्धान या अध्ययन के मार्गदर्शन में उपयोगी होता है।
किसी भी अध्ययन को वैज्ञानिक बनाने में परिकल्पना की अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिकल्पना निर्माण के उद्देश्य;
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अध्ययन की दिशा का निर्धारण;
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अध्ययन क्षेत्र को सीमित करने में सहायक ;
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उपयोगी तथ्यों के संकलन में सहायक ;
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तर्कसंगत निष्कर्षों में सहायक;
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सिद्धांतों के निर्माण में योगदान ;
परिकल्पनाओं का निर्माण और सत्यापन करना ही वैज्ञानिक अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य होता है।
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